साल 1929 की महामंदी से अब तक हमने यह देखा है कि आम धारणा के विपरीत शेयर बाजारों के प्रदर्शन का रियल इकोनॉमी से कोई लेना-देना नहीं रहा है. इसलिए शेयर बाजारों की तेजी को अर्थव्यवस्था में तरक्की का पैमाना नहीं माना जाता.
कोरोना संकट की वजह से दुनिया की अर्थव्यवस्था गर्त की ओर जा रही है, लेकिन शेयर बाजारों में तेजी आ रही है. इसकी वजह से अर्थव्यवस्था के शीर्ष पर मौजूद कुछ लोगों की संपदा में अरबों डॉलर की बढ़त हो रही है, जबकि निचले पायदान के अरबों लोग भारी आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं. आखिर क्या है इस विरोधाभास की वजह? आइए जानते हैं.
दुनिया गहरी मंदी के दौर में
विश्व बैंक ने अपने जून 2020 के 'ग्लोबल इकोनॉमिक प्रॉस्पेक्ट' रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया की अर्थव्यवस्था दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अब तक की सबसे गहरी मंदी का सामना कर रही है. साल 2020 में ग्लोबल इकोनॉमी में 5.2 फीसदी की गिरावट आने की आशंका है. विश्व बैंक के अनुसार इस वित्त वर्ष यानी 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था में भी 3.2 फीसदी की गिरावट आ सकती है. इसके मुताबिक अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 2020 में 6.1 फीसदी की गिरावट आ सकती है. गौरतलब है कि अमेरिका जैसे कई विकसित देशों में वित्त वर्ष जहां कैलेंडर ईयर के मुताबिक यानी जनवरी से दिसंबर तक होता है, वहीं भारत में यह अप्रैल से मार्च तक होता है.
लोगों की नौकरी गई, अरबपति कारोबारी मालामाल
18 जून, 2020 को अमेरिका के एक थिंकटैंक इंस्टीट्यूट फॉर पॉलिसी स्टडीज ने शेयर बाजार के आंकड़ों का एक विश्लेषण जारी किया. इसके मुताबिक कोरोना महामारी के दौरान 18 मार्च से 17 जून, 2020 के दौरान अमेरिका के अरबपतियों की संपदा में 584 अरब डॉलर यानी 20 फीसदी की बढ़त हुई है. इसी दौरान 4.55 करोड़ अमेरिकियों की नौकरी चली गई.
जनवरी से मार्च की तिमाही में आम लोगों के घरों की करीब 6.5 लाख करोड़ डॉलर संपदा गायब हो गई. अमेरिका की जीडीपी में 4.8 फीसदी की गिरावट आ गई.
18 मार्च से 17 जून, 2020 के दौरान अमेरिका के NASDAQ कम्पोजिट इंडेक्स में 41.8 फीसदी का भारी उछाल और S&P 500 में 27 फीसदी का उछाल आया है.
भारत का हाल भी अलग नहीं
भारत का मामला भी कुछ अलग नहीं है. बिजनेस टुडे मैगजीन के नवीनतम अंक (12 जुलाई, 2020) से इस बारे में तीन दिलचस्प आंकड़े मिलते हैं. 1. SBI के अनुमानों के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 में अर्थव्यवस्था में 6.8 फीसदी की गिरावट आ सकती है. 2. वित्त वर्ष 2019-20 की चौथी यानी मार्च की तिमाही में जीडीपी ग्रोथ सिर्फ 3.1 फीसदी था, जो 11 साल की सबसे धीमी दर है. 3. तमाम कंपनियों के नतीजों से यह पता चलता है कि उनकी आय और मुनाफे दोनों में भारी गिरावट आई है.
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अमेरिका की तरह भारतीय शेयर बाजार भी मार्च में कुछ शुरुआती गिरावट के बाद पूरे लॉकडाउन में तेजी का माहौल रहा है. 23 मार्च से 12 जून के बीच 10 शेयरों में 75 फीसदी तक का जबरदस्त उछाल देखा गया. भारत में लॉकडाउन 25 मार्च की रात से लगा था.
इस साल 17 जनवरी को सेंसेक्स अपने ऐतिहासिक ऊंचाई 42,063 पर पहुंचा था, जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था में तिमाही-दर-तिमाही लगातार गिरावट देखी जा रही थी. लेकिन मार्च के बाद की तेजी तो चकित करने वाली है, क्योंकि लॉकडाउन से इकोनॉमी पूरी पस्त थी और यह आशंका है कि कम से कम अगली दो तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट आएगी.
चकित करने वाली है यह तेजी
शेयर बाजारों की यह तेजी चकित करने वाली है, क्योंकि मैक्रोइकोनॉमिक फंडामेटल (अर्थव्यवस्था के वृहद बुनियादी आंकड़े) भी मजबूत नहीं हैं और न ही बिजनेस फंडामेंटल.
बिजनेस टुडे के अनुसार, भारत में वित्त वर्ष 2020-21 की चौथी तिमाही में 532 कंपनियों का शुद्ध मुनाफा 39.5 फीसदी गिर गया, जबकि एक साल पहले इसी दौरान उनके मुनाफे में 59 फीसदी की तेजी आई थी. उनकी आय तो 12 तिमाहियों में सबसे खराब थी.
लेकिन 23 मार्च से 12 जून के दौरान देश के तीन शीर्ष शेयरों-RIL, HDFC और Infosys की बाजार पूंजी में 6.3 लाख करोड़ रुपये यानी करीब 43 फीसदी की बढ़त हो गई, जबकि जनवरी से मार्च की तिमाही में इनका प्रदर्शन कमजोर ही था.
यही नहीं तमाम शेयरों की प्राइस टु अर्निंग रेश्यो (PE) से पता चलता है कि इनका वैल्यूएशन बहुत ज्यादा है. PE निवेश के लिए एक अच्छा पैमाना माना जाता है. कम (PE) वाले शेयर बेहतर माने जाते हैं. सेंसेक्स का PE तो साल 2007-08 के लीमैन संकट के मुकाबले दोगुना हो गया है. 18 जून को S&P BSE Sensex का पीई 21.81 था, जबकि यूएस डाओ जोंस का PE 19 और चीन के शंघाई कम्पोजिट इंडेक्स का PE 14.9 है.
यही नहीं, चीन से जारी ट्रेड वॉर के बीच भी शेयर बाजार की तेजी जारी है. अर्थव्यवस्था से इतर चलने का शेयर बाजारों का यह रुख साल 2008 की मंदी और साल 2000-01 के डॉटकॉम बर्स्ट के दौरान भी देखा गया था.
क्या है शेयर बाजारों की तेजी की वजह
जब अर्थव्यवस्थाएं गर्त की ओर जा रही हैं, शेयर बाजारों उछाल क्यों आ रहा है? एक वजह यह मानी जा रही है कि सरकारों ने अर्थव्यवस्था में जो नकदी डाली है उसका सकारात्मक असर हुआ है. अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने न केवल ब्याज दरें घटाकर 0.25 फीसदी तक कर दिया, बल्कि राहत पैकेज के तहत खुले बाजार से कॉरपोरेट बॉन्ड खरीदने का निर्णय लिया. यानी जनता के धन से निजी निवेश को बढ़ाने का रास्ता अपनाया गया. ब्याज दरें शून्य के करीब पहुंचाने का नतीजा यह हुआ कि लोग उधार का धन लेकर शेयर बाजार में निवेश करने लगे. इसकी वजह से अमेरिकी शेयर बाजार में सुधार हुआ.
तो अगर शेयर बाजार धड़ाम होते हैं तो एक बार फिर टैक्सपेयर्स का पैसा निजी निवेश को बचाने के लिए खप जाएगा. ऐसा हम 2007-08 की मंदी के दौरान भारत और कई अन्य देशों में देख चुके हैं. यह कोई रहस्य की बात नहीं है. जब भी शेयर बाजार में तेज गिरावट आती है, सरकार एलआईसी और एसबीआई जैसी सार्वजनिक कंपनियों को निर्देश देती है कि वे तेजी से कदम उठाएं और शेयरों को खरीद कर बाजार के सेंटिमेंट को मजबूत करें.
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