निर्मला सीतारमण. भारत की वित्त मंत्री. 27 जुलाई को उन्होंने कहा कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की 23 कंपनियों (पीएसयू) यानी सरकारी कंपनियों में विनिवेश पर काम कर रही है. इस काम के लिए कैबिनेट ने अनुमति दे दी है. सीतारमण ने हीरो एंटरप्राइजेज के चेयरमैन सुनील कांत मुंजाल से बातचीत में यह जानकारी दी. हालांकि उन्होंने उन कंपनियों के नाम नहीं बताए, जिनकी हिस्सेदारी बेची जाएगी.
आगे बढ़ने से पहले जान लेते हैं, विनिवेश क्या होता है?
विनिवेश, निवेश का उलटा होता है. निवेश होता है, किसी कंपनी या योजना में पैसा लगाना, उसमें हिस्सेदार बनना. जबकि विनिवेश का मतलब है कि अपनी हिस्सेदारी बेचना या अपनी रकम वापस निकालना. विनिवेश मालिकाना हक घटाने की प्रक्रिया है. जैसे-
राजू के पास 100 रुपये का क्रिकेट बैट है. वह उसका खुद का है. अब राजू को कुछ पैसे चाहिए. तो उसने मोहल्ले के बाकी लड़कों से कहा कि कुछ पैसे दे दो. बल्ला तुम्हारा भी हो जाएगा. बंटी और मोंटी ने बात मान ली. उन्होंने 30-30 रुपये दे दिए. यह बंटी और मोंटी का निवेश था. ऐसे में बल्ले के मालिकाना हक में अब तीन हिस्सेदार हो गए. एक दिन मोंटी ने कहा कि उसे बल्ला नहीं रखना. उसने अपनी हिस्सेदारी बंटी को बेच दी और 30 रुपये लेकर बाहर हो गया. यह उसका विनिवेश हो गया. अब बल्ले का मालिकाना हक केवल राजू और बंटी के पास ही रह गया.
सरकार की भी कुछ ऐसी ही योजना है. मोदी सरकार पिछले कुछ सालों से इस काम में लगी हुई है.
सीतारमण ने क्या कहा,
सीतारमण ने कहा कि सरकार ने आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत सभी सेक्टर्स को प्राइवेट कंपनियों के लिए खोलने का ऐलान किया था. उन्होंने कहा,
कौन से सेक्टर रणनीतिक होंगे, अभी इस बारे में अभी अंतिम फैसला नहीं हुआ है. इसलिए मैं अभी कुछ बोल नहीं सकती. लेकिन रणनीतिक सेक्टर्स में भी प्राइवेट कंपनियों को आने की अनुमति होगी.
वित्त मंत्री का दावा है कि प्राइवेट कंपनियों की हिस्सेदारी से सरकारी कंपनियां मजबूत होंगी और उनकी क्षमता भी बढ़ेगी. सीतारमण ने कहा कि सरकार सही कीमत मिलने के समय पर सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचना चाहती है. उन्होंने कहा कि 22-23 सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी बेचने को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है. इससे साफ है कि जिन कंपनियों को कैबिनेट से मंजूरी मिल चुकी है, कम से कम उन कंपनियों की हिस्सेदारी तो बेची ही जाएगी.
सरकार ने 2.10 लाख करोड़ रुपये कमाने का रखा है लक्ष्य
बता दें कि सरकार ने इस वित्तीय वर्ष यानी 2020-21 में हिस्सेदारी बेचकर 2.10 लाख करोड़ रुपये कमाने का लक्ष्य रखा है. इसके तहत 1.20 लाख करोड़ सरकारी क्षेत्र की कंपनियों और 90 हजार करोड़ रुपये एलआईसी जैसी वित्तीय कामकाज वाली कंपनियों से लाने की योजना है. इकनॉमिक टाइम्स की खबर के अनुसार, सरकार ने पिछले वित्तीय वर्ष में 1.05 लाख करोड़ रुपये सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी बेचकर कमाने का लक्ष्य रखा था. लेकिन सरकार के खजाने में काफी कम पैसा आया. अनुमान है सरकार को करीब 65 हजार करोड़ रुपये ही मिले.
सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी क्यों बेच रही है मोदी सरकार
भारत की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ सालों से खस्ता हालत में है. अभी कोरोना वायरस और लॉकडाउन ने कंगाली में आटा गीला कर दिया. सरकार का खर्चा बढ़ रहा है और उसके पास पैसे भी नहीं है. ऐसे में सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी और उनकी संपत्ति बेचकर खजाना भरने की कोशिश है.
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